सावन
सावन
जब कानों में गूँजे कोयल की, मनभावन सी बोली।
तब समझो रूत बदल रही है, चढ़ सावन की डोली॥
गरमी से व्याकुल धरती जब, और थोड़ा अकुलाये।
आसमान भी आतुर हो कर तब, स्नेह सुधा बरसाये॥
चटक हरे रंग से प्रकृति जब, खेले पावन सी होली।
तब समझो रूत बदल रही है, चढ़ सावन की डोली॥
खेतों में बैलों के गले जब घुँघरू, गीत बहार सुनाये।
धान रोपती बनिहारन भी जब, मीत मल्हार सुनाये॥
जब बिजूरी औ बदरी की लागे, अनुभावन किलोली।
तब समझो रूत बदल रही है, चढ़ सावन की डोली॥
मचल मचल के बहने लगती है, जब पवन पुरवाई।
सखियों के झूलों से लगती है, सजने आम अमराई॥
नन्द भावज की कजरी औ रासि, गूँजे भावन ठिठोली।
तब समझो रूत बदल रही है, चढ़ सावन की डोली॥
आसमाँ के आँखों में जब बादल कजरी लगा जाती है।
धरती को भी घानी चूनर से जब प्रकृति सजा लाती है॥
आँखों को भाये धूप छाँव की जब, सुहावन मिचोली।
तब समझो रुत बदल रही है, चढ़ सावन की डोली॥
मूसलाधार मेंह जब कारी, अंधियारी बदरी बरसाये।
धरती संग संग आसमान में, बम बम लहरी लहराये।
काँधे काँवर सजा जो निकले, भूतभावन की टोली।
तब समझो रूत बदल रही है, चढ़ सावन की डोली॥
