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Rajiv R. Srivastava

Abstract

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Rajiv R. Srivastava

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ये जन्मदिवस भी ना ...

ये जन्मदिवस भी ना ...

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पाने और खोने का उत्सव, ग़ज़ब होता है।

ये जन्मदिवस भी ना रासि, अजब होता है॥


कतरे कतरे में पिघलता, जीवन का हर पल क्षण।

हर साँसों के साथ बिखरता, काया का कण कण॥

सब तो घटता ही है, बढ़त कब होता है.?

ये जन्मदिवस भी ना…


जीवन की आपा- धापी में, न जाने कब बड़े हो गए।

कल ही तो था बचपन, आज पचपन में खड़े हो गए॥

घटते उम्र का उत्सव.?, क्यूँ ये सब होता है।

ये जन्मदिवस भी ना….


नामालूम ये सफ़र कब तक, कितना लंबा चलेगा।

मौत को जीवन न जाने कब, और कितना छलेगा॥

इसीलिए ये जश्न शायद, बेसबब होता है।

ये जन्मदिवस भी ना…


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