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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Classics Inspirational

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Classics Inspirational

खुदा के मंदिर बने हुए हैं

खुदा के मंदिर बने हुए हैं

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खयाल पाकर नये नये से गुलों से गुलशन सजे हुए हैं।

कहीं तो चेहरे कहीं तो मौसम जरा जरा सा खिले हुए हैं।।


अभी हुई थी जरा सी आहट के जैसे साजन बुला रहे हों 

तभी हवाओं फिजा औ फूलो से खत हजारों मिले हुए हैं।


सुनो हवाओं खबर मिली है तुम्हारी कीमत फिसल गयी अब

तभी तो महफिल में रौशनी है बेखौफ दीपक जले हुए हैं।


खबर किसे है हुआ क्यों अंधा ये आदमी ये जमीर वाला

इसी के हाँथों न जाने कितने खुदा के मन्दिर बने हुए हैं।


खयाल इल्म-औ-अदब से बढ़कर कहाँ मिलेगा बताये कोई

इसी की छत के तले हजारों नसीब अब तक पले हुए हैं।


तुम्हारे चेहरे की मौसिकी से यहाँ वहाँ पे हैरान हैं सब

खबर मिली है फलक से तारे जमीं पे आकर जमे हुए हैं।


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