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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Romance Classics

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राहुल द्विवेदी 'स्मित'

Romance Classics

तेरी खुशबू से भर जाए

तेरी खुशबू से भर जाए

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तेरे अहसास का पानी अगर दिल तक उतर जाए।

भला मुमकिन कहाँ ये रूह प्यासी रह के मर जाये।।


फकत तू पास आ, आकर मेरी साँसों को छू भर ले

ये कमरा जिस्म का मेरे तेरी खुशबू से भर जाए।।


जमाने से चरागों ने नहीं दी आग को दावत

अगर तेरी इनायत हो तो ये तोहमत उतर जाए।


भला कब चीखने से सोहरतें मिलती हैं दुनिया में

इरादे नेक हों, तय है, जमाने तक खबर जाए।


चलो जब वक़्त के जानिब तो रक्खो साफ़ दामन को

कहीं ऐसा न हो 'अस्मित' तू माजी से ही डर जाए।


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