हम मानव है
हम मानव है
बिच्छू का काम काट खाना ही है,
वो बदलेगा नहीं,
इंसान भी अपनी बुराइओं से
भागता फिरेगा, बदलेगा नहीं।
दोष देने में तो जैसे माहरत
हासिल है, वो भूलेगा नहीं,
खुद की गलती छुपाने में
लग जायेगा, सुधरेगा नहीं।
उम्र का लिहाज़ कर के बोलेगा नहीं,
पर मन की कड़वाहट मिटायेगा नहीं,
किसी की अच्छाई से जलेगा,
खुद को उस काबिल वो बनायेगा नहीं।
किताबें दे दो, चाहे ज्ञान का सागर भर दो,
अपना अहंकार वो भूलेगा नहीं,
चाहे मर्ज़ी उसे समझाओ,
कलयुग का ये मानवी,
अधर्म करना छोड़ेगा नहीं।'