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Bhavna Thaker

Classics

4.2  

Bhavna Thaker

Classics

शृंगार रस

शृंगार रस

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347



कब तक चाँद से गुफ़्तगु करते रहेंगे मेरे अहसास.. अपने तसव्वुर में बसने की दावत तो दो मेरी प्रीत को,

महसूस करो ना कभी तुम मेरे स्पंदन को..

मेरी बिंदी को सितारा समझो अपने लबों की मोहर से मेरा शृंगार करो न...


अनुमति दो न अपने दिल को झाँके कभी मेरे दिल की अंजुमन में, 

तुम चाहो शिद्दत से मेरी चाहत को महसूस करना

लालसा जगाओ मेरी साँसों की खुशबू से खेलने की...


चखो मेरे धैर्य की चरम अपनी नमकीन वासना को परे रखकर... 

संदली खुशबू मेरे जिस्म की धरो न अपने लबों पर...


गुनगुनाती है मेरे अंगो से इश्क की सरगम पिघल रही है मेरी तिश्नगी... 

पी लो न तुम, चलो मैं धूप बन जाऊँ लोबानी तुम प्रार्थना बन जाओ... 


झांको न मेरी बादामी ख़्वाबगाह के भीतर

अपनी भूख को भी महसूस करो 

मैं मंदिर बन जाऊँ, बन जाओ न तुम पुजारी.... 


कृष्ण की बाँसुरी सी सजा लो मुझे अपने अधरों पर 

तबाह कर दो मेरे मोह को इस कदर की मैं समूची हो जाऊँ तुम्हारी,

घोषित कर दो न तुम मुझे अपनी अमानत।


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