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Bharat Agrawal

Classics

4  

Bharat Agrawal

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माँ ओ मेरी माँ

माँ ओ मेरी माँ

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माँ ओ मेरी माँ तूने मुझे हमेशा अपना लाड़ला माना है।

दिन भर थकने के बाद भी तूने मुझे हमेशा अपनी गोदी में सुलाया है।

आँखों में आँसु तो तुझे मेरे चोट लगने पर आते थे।


फिर भी मुझे हमेशा तूने खुश रहना कैसे सिखाया था ?

अपने पीछे खाना लेकर भगाना न जाने मुझे किसने सिखाया था ?

फिर भी थक कर तूने मुझे उतने ही प्यार से खिलाया था।

फिर भी थक कर तूने मुझे उतने ही प्यार से खिलाया था।


 मेरे सपनों को अपना मानकर जीना तुझे ना जाने किसने सिखाया था ?

अपने सपने टूटने के बाद भी तूने हमें गगन में उड़ना सिखाया था।

 माँ ओ मेरी माँ तूने इतने कष्टों में मुझे कैसा पाला था ?

नौ देवी है तू, ममता और शक्ति की जीवित मूर्त है तू मेरा

संसार मेरा सब कुछ है तू।


हे प्रभु ! दे तो मुझे इतनी शक्ति कि इसके सारे सपने पूरे कर सकूँ।

उसका नाम रोशन कर सकूँ ।

माँ ने ही तो अपना नाम भूला कर मुझे रोशन करना चाहा है।

माँ ओ मेरी माँ तूने कितने प्यार और ममता से पाला है।


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