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Priyanka Gupta

Abstract Classics

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Priyanka Gupta

Abstract Classics

स्त्री हूं ना !

स्त्री हूं ना !

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चट्टान सी सुदृढ़ दिखती हूं हमेशा,

मुस्कुराहट रहती है चेहरे पर हमेशा,

मैं भी टूटती हूं, बिखर जाती हूं,

मोम की तरह पिघल जाती हूं,


काश ! इस बात को कोई समझ पाता

इस ख्याल से नम हुई पलकों को,

अपने ही आंचल से पोछ लेती हूं,

फिर मुस्कुरा लेती हूं

स्त्री हूं ना !


दबा के पीर अपने अंदर ही अंदर,

खुशियां सबको देती हूं,

सदियों से संघर्ष किए,

मूक भावना सहती हूं,

फिर मुस्कुरा लेती हूं

स्त्री हूं ना !


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