स्त्री हूं ना !
स्त्री हूं ना !
चट्टान सी सुदृढ़ दिखती हूं हमेशा,
मुस्कुराहट रहती है चेहरे पर हमेशा,
मैं भी टूटती हूं, बिखर जाती हूं,
मोम की तरह पिघल जाती हूं,
काश ! इस बात को कोई समझ पाता
इस ख्याल से नम हुई पलकों को,
अपने ही आंचल से पोछ लेती हूं,
फिर मुस्कुरा लेती हूं
स्त्री हूं ना !
दबा के पीर अपने अंदर ही अंदर,
खुशियां सबको देती हूं,
सदियों से संघर्ष किए,
मूक भावना सहती हूं,
फिर मुस्कुरा लेती हूं
स्त्री हूं ना !
