कितनी बेबसी है हर तरफ़
कितनी बेबसी है हर तरफ़
बिखरा बिखरा ये जहां,बदला सा हर इंसान है,
कहीं मौत,कहीं चीख,कहीं बिखरा हर परिवार है।
मंदी की मार तो कहीं मची हाहाकार है,
आंखो में भय बसा, कितना मजबूर हर इंसान है।
मन और पेट में हो रहा द्वंद्व है,
बच जाऊंगा मैं फिर कभी,पहले मेरा परिवार है,
जान की अब परवाह नहीं, उनकी भूख मिट जाये,
अब बस यही अरमान है।
बिखरा बिखरा ये जहां....
