पिता
पिता
फर्श से अर्श तक, शून्य से शिखर तक,
सपनों को बुनते, जीवन के संघर्षों से लड़ते देखा हैं,
मैंने ऐसा इंसान, एक पिता को देखा है।
जिम्मेदारियों को निभाने के चक्कर में,
खुद से समझौता करते,
हमारे हर ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए
दिन रात खटते देखा है,
मैंने ऐसा इंसान, एक पिता को देखा हैं।
जब जब मुसीबतों से हारे हम, ढाढस हमें बंधाकर,
लोग क्या कहेंगे ये सोच के,
अकेले में उन्हें आंसू बहाते देखा हैं,
खुद की परवाह चाहे ना हो,
लेकिन अपनों के लिए हमेशा परवाह करते देखा है,
परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों,
हमेशा अपने कर्तव्यों को निभाते देखा हैं,
मैंने ऐसा इंसान, एक पिता को देखा हैं।
