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Bhavna Thaker

Classics

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Bhavna Thaker

Classics

सुबह होने तक

सुबह होने तक

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एक रात दे दो मुझे 

सुबह होने तक पूरी उम्र गुज़ार लूँ

तुम्हारे कंधे को तकिया बनाकर सोऊँ 

तुम्हारे कानों में गुनगुनाते 

मखमली आवाज़ का जादू घोले

इश्क की गाथा कहनी है सुबह होने तक ...


मेरे अहसास की जुबाँ समझो 

मेरी चुड़ीयों की खनकार पी लो

तुम्हारी धडक से ताल मिलाते कहती है

ए सुनों न 

नखशिख इस सुनहरे तन का शृंगार करो न सुबह होने तक...


छूना नहीं है तुम्हें पहनना है ऐसे जैसे रूह के उपर तन का चोला 

मेरी त्वचा पर परत बनकर छा जाओ न सुबह होने तक...

 

खुली ज़ुल्फ़ो की फिरदौसी खुशबू में खो जाओ न खुले

आसमान के शामियाने तले एक दूसरे को महसूस करें सुबह होने तक...


मेरी पायल के अरमाँ पूरे कर दो झनकार के शोर पर अपना दिल बिछा दो 

सन्नाटे के साये तले मुझको मुझसे चुरा लो सुबह होने तक...


फ़िकी ज़िस्त में मोहब्बत की मेहंदी रच दो न

एक रात की दुल्हन बनाकर इस अब्र

से तन को पाक कर दो न सुबह होने तक...

  

होंठों में दबी उफ्फ़ निकल जाए 

एक मोहर की आस में अटकी है 

हया के दायरे से कदम लाँघकर मैं तुमको तुमसे मांगती हूँ 

खुद को मेरी अमानत समझकर सौंप दो न सुबह होने तक...


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