मोमबत्ती
मोमबत्ती
मोमबत्ती ने सीखा
देवी से ये गुण,और बोली
कैसी थी तुम जब युवा थी
सुडौल काया तरूणों को रिझाती थी
एक रोज उस उपवन में तितली सी बन जाती थी
क्या तुमने ही ये भार लिया संसार बनाये रखने का
सभ्यता बचाये रखने का , संस्कृति बनाये रखने का
पिघला स्वयं की देह को , प्रकाश बनाये रखने का
मैं तुम जैसी हो जाऊं कामना यही बस करती हूँ
झुक कर इस बलिदान की देवी को सत् सत् नमन मैं करती हूँ।
