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Dinesh Dubey

Abstract

4  

Dinesh Dubey

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हमारे लिए

हमारे लिए

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ना रुकता ये पल कभी किसी के लिए,

हर पल हर मोड़ तन्हा है सिर्फ मेरे लिए,

यहां सभी हैं अपना सिर्फ कहने के लिए,

अपनापन भी एक धोखा है जीवन के लिए,।

ये जिंदगी गर एक सज़ा है जीने के लिए,

ये प्यार भी एक धोखा है पाने के लिए ,

है लगी भीड़ यहां अनगिनत लोगों की,

पर सबको है जरूरत यहां सिर्फ पैसों की ,।

कोई ना जीता यह अपने जन्म देने वालो के लिए,

मर जाते हैं सब बेवजह, यहां ज़माने के लिए ,

मर मर के जीए लोगों को अपना बनाने के लिए,

वो पूछते रहे तुमने किया क्या हमारे लिए,।



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