सबकुछ बदल गया
सबकुछ बदल गया
जिंदगी की एक हकीकत में ये मालूम पड़ा
बदल गया है समय, बदल गया है इंसान
रहता नहीं दिलों में अब, प्यार पहले सा
पैसे और दौलत में आज अंधा हर इंसान
तांक पर लगे है रिश्ते, इंसानियत लुप्त है
कागज़ और कलमों में सिमटे सब एहसास
करने बातें अपनों से अब बातें भी ना रही
वक्त भी ना बचा अब साथ में बिताने को
मसरूफीयत का साफा पहना है हर इंसान
पूर्वजों का गांव जो कभी शांत और हरा था
उसी जगह पर अब खड़ा शहर का ये ढेरा है
गुज़रे वक्त के पलों की यादें भी धुँधली हो गई
खुशी के पल छूट गए, रिश्तों की डोर टूट गई
ख्वाबों के वे खुबसूरत महल धराशायी हो गए
आज मालूम पड़ा समय कितना बदला गया
कुछ नहीं रहा पहले सा, सबकुछ बदल गया।
- सुमन मीना (अदिति)
लेखिका एवं साहित्यकार