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Baman Chandra Dixit

Classics

4.5  

Baman Chandra Dixit

Classics

बोलो राम

बोलो राम

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बोलो राम बोलो राम 

बोलो राम राम राम।।

दिन शेष तरणि-किरणें शेष

ब्याप्त काया सुरतरंगिणी अशेष

बिन तरणि कैसे जाएं उस पार

अति चिंतित चित्त मुनि विशेष।।


अथाह गंगा की धार को

पार कैसे जाएं उस पार को

एक नाव दिखी कैवर्त भी दिखा

विश्वामित्र पुकारते कैवर्त को।।


बार बार पुकारते शीरीराम

जिन्हें पुकारता चारों धाम

सुन अनसुना करते धीवर को

बोलते है इसतरह प्रभु श्रीराम।।


तुम बधिर हो या हो विषधर

सुनते नहीँ क्यों कोई पुकार

फिर भी आंखों से सुनता है वो

फेरो नज़र और देखो इधर।।


बोले धीवर सुनो पुरुषोत्तम    

बातें बहुत सुनी है विचक्षण    

पथ में पत्थर पे धरे पाव    

भये नार कैसे भला बोलो राम।।


में बात तोर नहीं मानूँगा

मेरे नाव पे तुम्हें ना घेनूँगा

गर तरणि तरुणी बन गया तो क्या

घर परिवार कैसे पालूंगा।।


बिन धोये तोर बेनी चरणों को

ना दूंगा नाव में शरणों को

तब तक पखारूँगा पाव तेरे

जबतक तसल्ली ना प्राणों को।।


बढा दिए धीरे पैर को अपनी

भावग्राही भबाधिश शिरोमणि

देखे पैर धीबर बार बार मगन

देखे सुर-सरिता अम्बर धरणी


जिस पैर को ब्रम्हा तरस गए

शिव शंकर भी कभो धो न पाये

धोया धीवर उस चरणों को

नाम पतितपाबन विक्षात हुए।।


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