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Sudhir Srivastava

Classics

4  

Sudhir Srivastava

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सीताहरण

सीताहरण

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आकाश मार्ग से एक नारी की

करुण पुकार सुन गिद्धराज

पवन वेग से पहुँचे वहाँ 

एक अबला को कष्ट में

देख व्यथित हुए वहाँ ।

प्रभु राम के उपासक 

दशरथ के सदृश,

अपने पौरुष का दिखाया

रावण को दमखम।

रावण पर करने प्रहार

पवन वेग से दौड़ पड़े,

केश पकड़ रावण मार

धरती पर पटक दिए।

जटायु के प्रहार से घायल

रावण तनिक अचेत हुआ,

गीधराज ने सीता को

रथ से उतार कर खड़ा किया।

दूर हुई अचेतना रावण की

उठा ली अपनी तलवार,

क्रोध में तो था ही रावण

जटायु पर किया प्रहार।

जितना सामर्थ्य जटायु का था

उतना उन्होंने प्रतिकार किया,

एक पंख कटा तब गिरे धरा पर

हा राम! हा राम! पुकार किया।

रावण सीता को रथ में बिठा

फिर आकाश मार्ग से आगे बढ़ा,

देखा जब समूह बंदरों का

तब सीता के मन में आस जगी।

एक -एक कर आभूषण

सीता ने उतार कर फेंक दिए ,

शायद इसी सहारे प्रभु जी

उन तक कैसे भी पहुँच सकें।

पहुँच गया लंका में रावण

सीता को अपने संग लिए,

अशोक वाटिका में उनको

अशोक वृक्ष के नीचे प्रश्रय दिया।

वाटिका में बैठी सीता 

हर क्षण जपती राम का नाम,

सुबह, दोपहर, शाम, रात्रि का

होता नहीं तनिक भी भान। 


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