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Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

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कर्मों का फल

कर्मों का फल

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कंस को मारा कृष्ण, बलराम ने 

माता पिता के पास थे पहुँचे 

हाथ पैर में बेड़ियाँ उनके 

कृष्ण ने बंधन खोल दिए थे ।


देवकी पूछें, ‘ हे कृष्ण तुम 

एक बात बतलाओ मुझको 

तुम तो इस जगत के ईश्वर 

इतनी देर से फिर क्यों आए हो ?


तुम तो सर्वशक्तिमान हो 

चोदह वर्ष फिर क्यों लगा दिए 

माता पिता को अपनी शक्ति से 

बहुत पहले छुड़ा सकते थे ‘ ।


श्री कृष्ण कहें, ‘ हे माता,

कर्म का फल ये तुम लोगों का 

त्रेता में जब मैं राम था 

वनवास दिया था मुझे चौदह वर्ष का ।


चोदह वर्ष मैंने वन में काटे

उतने ही तुमने जेल में 

अब फल वो पूरा हो गया ‘

कृष्ण पड गए उनके चरणों में ।


‘ हे कृष्ण, ये हो नहीं सकता 

कि मैंने तुम्हें वनवास दिया हो 

क्या कोई सच्चाई इसमें 

जो तुम मुझसे कह रहे हो ?’


प्रभु कहें ‘ हे माता तुम, 

माता कैकई थीं उस समय 

वासुदेव राजा दशरथ थे 

वनवास दिया तुम्हारे कहने से’ ।


‘ कृष्ण, माना कि मैं कैकई थी 

तो उस समय कौशल्या जो थी 

कौन सा जन्म लिया इस युग में 

इस समय वो कहाँ रह रहीं’।


‘ कौशल्या माँ इस जन्म में भी 

मेरा लालन पालन कर रहीं 

माँ यशोदा के रूप में 

प्यार कर रहीं मुझे वैसे ही’ ।


भगवान के माता पिता भी 

जो तुम हो, तो भी तुमको 

कभी ना कभी पड़ेगा भोगना 

उनका फल तो, कर्म किए जो ।


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