कर्मों का फल
कर्मों का फल
कंस को मारा कृष्ण, बलराम ने
माता पिता के पास थे पहुँचे
हाथ पैर में बेड़ियाँ उनके
कृष्ण ने बंधन खोल दिए थे ।
देवकी पूछें, ‘ हे कृष्ण तुम
एक बात बतलाओ मुझको
तुम तो इस जगत के ईश्वर
इतनी देर से फिर क्यों आए हो ?
तुम तो सर्वशक्तिमान हो
चोदह वर्ष फिर क्यों लगा दिए
माता पिता को अपनी शक्ति से
बहुत पहले छुड़ा सकते थे ‘ ।
श्री कृष्ण कहें, ‘ हे माता,
कर्म का फल ये तुम लोगों का
त्रेता में जब मैं राम था
वनवास दिया था मुझे चौदह वर्ष का ।
चोदह वर्ष मैंने वन में काटे
उतने ही तुमने जेल में
अब फल वो पूरा हो गया ‘
कृष्ण पड गए उनके चरणों में ।
‘ हे कृष्ण, ये हो नहीं सकता
कि मैंने तुम्हें वनवास दिया हो
क्या कोई सच्चाई इसमें
जो तुम मुझसे कह रहे हो ?’
प्रभु कहें ‘ हे माता तुम,
माता कैकई थीं उस समय
वासुदेव राजा दशरथ थे
वनवास दिया तुम्हारे कहने से’ ।
‘ कृष्ण, माना कि मैं कैकई थी
तो उस समय कौशल्या जो थी
कौन सा जन्म लिया इस युग में
इस समय वो कहाँ रह रहीं’।
‘ कौशल्या माँ इस जन्म में भी
मेरा लालन पालन कर रहीं
माँ यशोदा के रूप में
प्यार कर रहीं मुझे वैसे ही’ ।
भगवान के माता पिता भी
जो तुम हो, तो भी तुमको
कभी ना कभी पड़ेगा भोगना
उनका फल तो, कर्म किए जो ।