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Anil Jaswal

Classics

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Anil Jaswal

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आंख के बदले आंख, कैसा इंसाफ

आंख के बदले आंख, कैसा इंसाफ

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इंसान सभ्य प्राणी,

साधनों से भरीपुर,

हर मुद्दे केे लिए,

नियम और  कायदे,

बहुत सोच समझकर बनाए,

इनके अनुसार  ही,

समाज  चलता।


परंतु हम इंसानों में एक होड़,

हर कोई आगे निकलना चाहता,

एक दुसरे को,

नीचे लगाकर भी,

विजय हासिल करना चाहता,

इसमें कई सज्जन हो जाते आहात,

उनकी मेहनत पर,

फिर जाता पानी।


जो कामयाब होता,

वो उस नशे,

कुछ और‌ ग़लत कर  देेेता,

जिससे चोट और   गहरी हो जाती,

फिर नासुुर बन‌ जाती।


कुछ इंसाान तो खामोश हो   जातेे,

लेकिन  कई‌  चुुुप नहीं रहते,

और मौकेे तलाश करते,

अगर मिले,

तो करेंं,  

हिसाब किताब,

यहां से होता, ‌

अनुुुुचित का जन्म।


जब एक दो बार,

कामयाब हो जााते,

तो उनको प्रशासन और अदालत भी,‌

खिलौना लगती,

वो बार बार अन्याय करते,

किस्मत से बच  निकलते,

और यहां  सेे एक,

घोर अपराधी  पनपता।


इसका सीधा साधा,

प्रकृति  का नियम,

पुलिस और अदालती कार्रवाई हो,

चुस्त दुरुस्त,

तुरंत ‌ फैसले आएं,

अपराधी को मिले सजा,

वो अंदर जाए,

तभी कुछ बात बने।


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