वक़्त का ख़ौफ़ करो ...!
वक़्त का ख़ौफ़ करो ...!
माँ हमेशा कहती हैं, बेटा! वक़्त से बड़ा बलवान कोई नहीं,
वक़्त का ख़ौफ़ करो,
पर कल तक मैं इस बात से मुक़ड जाती थी कि, ऐसे तो इंसानों के अविष्कार नहीं,
अपने हाथों पे भरोसा करो|
पर आज कुछ हुआ, कुछ ऐसा हुआ कि हम सबको अपने माँ की बातें याद आ गयी,
कुछ ऐसा घाटा कि हमें उनकी बात-बे-बात पे दुआ माँगने की फिदरत याद आ गयी|
दिन और रात का फ़र्क आ गया है हमारे कल और आज में,
कल जो हम आसमानों मे उँची उड़ाने भरते थे,
वही आज हम, चार दीवारी से घिरे कमरे मे बंद हैं|
कल जो हम एक क्लिक पे अपनी पसंदीदा चीज़ आँखों के सामने पाते थे,
वही आज हम, क्लिक तो दूर, अपनी पसंद के भी मोहताज नही रहे|
कल जो हम मूड अच्छा नही होने पे शॉपिंग माल का चक्कर लगाते थे,
वही आज हम, नये-नये पकवान बनाने में रसोई के चक्कर लगते हैं|
कल जो हम हर छोटी बात पे दोस्त को गले लगा कर दिल हल्का कर लेते थे,
वही आज हम, पास के कमरे मे बैठे दोस्त को भी वर्चुयल-हग देते हैं|
कल जो हम बेफिक्री से ज़िंदगी जीते थे,
वही हम! वही हम! आज एक-एक दिन डर और ख़ौफ़ मे जीते है|
आज समझ आया, माँ सच ही कहती,
वक़्त से बड़ा बलवान कोई नही|
पल भर में ये वक़्त राजा को रंक बना देता है और, रंक को राजा,
वक़्त का कोई ठीक नहीं और, वक़्त से बड़ा बलवान कोई नहीं,
वक़्त का ख़ौफ़ करो!
