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The Legal Rights Org of India ADV Neetu Verma

Tragedy Crime

3.6  

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Tragedy Crime

कन्या भ्रूण की व्यथा तिमिरलोक

कन्या भ्रूण की व्यथा तिमिरलोक

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तिमिरलोक, ये जलमंडल है, मैं जिस घर में सोई हूँ ।

धड़कन सुनती रहती हूँ सुंदर सपनों में खोई हूँ ।

मैं मम्मी जैसी लगती या पापा की राजदुलारी हूँ ।

मैं ही तो हूँ जो उनके, सूने आँगन की फुलवारी हूँ ।


दुनिया में जब मैं आऊँगी तो, मम्मी-पापा देखूँगी ।

भैया, दीदी, दादी, नानी और चाची- चाचा देखूँगी ।

सब कितना अच्छा है ना, मैं अपने घर में लेटी हूँ ।

कहते हैं दुनिया बुरी बहुत, देखो जिंदा हूँ! बेटी हूँ!


इक रोज़ सुना मैंने देखो, मुझको बेटे की आशा है ।

बेटा ही मेरे वंशबीज की पूर्णसत्य परिभाषा है ।

जाने कैसी बात चली, क्यूँ रार हुआ फिर पापा से

मम्मी थक के बैठ गयी, हामी भर घोर निराशा से।


दिल की धड़कन तेज़ हुई, मेरा तन मुझ पर बोझ हुआ

पता नहीं क्यूँ मम्मी पापा को, ना कुछ संकोच हुआ ।

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मेरे सारे सुंदर सपने अब, मुझसे नाता तोड़ गऐ।

भैया-दीदी, दादी-नानी, मुझको मरने को छोड़ गऐ ।


वो मेरा अंतिम दिन था, मैं सुंदर सपनों में खोई थी ।

जब मेरा हश्र निकट आया, मैं पापा-पापा रोई थी ।

मेरी दुनिया जलमग्न नहीं थी, पूरी सूखी-सूखी थी ।

वो कालस्वरूपा कैंची अब, मेरे उस तन की भूखी थी।


जकड़ा पैर दर्द से चीखी, तुमको याद किया पापा ।

मेरी अदनी पायल का सपना, क्यूँ बर्बाद किया पापा

बस कंगन वाले हाथ बचे, बेपैर हो गयी थी पापा ।

मम्मी के अंदर मैं, अंगों का ढेर हो गयी थी पापा ।


हाथों को मेरे काट-पीट, कैंची गर्दन पर आन टिकी ।

रो-रोकर चीखें मार रही थी, बेटी तेरी कटी- पिटी ।

मेरी गर्दन को काट रही कैंची, मैं लेकिन ज़िन्दा थी ।

ना शर्मसार मम्मी-पापा, ना मानवता शर्मिंदा थी ।



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