स्त्री जन्म से ही अभिनेत्री
स्त्री जन्म से ही अभिनेत्री
वास्तव में स्त्री जन्म से ही
अभिनेत्री होती है.......
वो लडती रहती है हर पल
अपने वजूद के लिए
जहाँ जहाँ रखती है कदम
वो जमीन वो स्टेज किसी रंगमंच
की पृष्ठभूमि से कम नहीं हो सकती
हां सत्यापन के साथ
उसके हर किरदार में
खुद ईश्वर तालियां बजाता है
सृजन संचार दायित्व त्याग से परिपूर्ण होकर अपने हाथों
से नये निर्माण का सशक्त
बीज बोती हैं
वास्तव में स्त्री जन्म से ही
अभिनेत्री होती है......
भंवर में घूमती हुई करके
खुद को लयबद्ध
तपकर सांचे में ढालती रहती
वक्त के साथ अपने असतित्व
को धनुर्धर योध्दा
का लेकर आकार सर पर
बांधकर समाज के रिवाज
बेहद कम ही पाती है मगर
बहुत कुछ खोती है
वास्तव में स्त्री जन्म से ही
अभिनेत्री होती है.......
बिंदु से बिंदि, बिंदी से बिंदिया
के सफर तक बेबाक़
गूढ रहस्य को समझना
समंदर से सुई ढुंढने जैसा है
जिस दिन स्त्री के काम का
मूल्यांकन होगा उस दिन
सारे संसार का 99/
वेतन आभार व्यक्त करते
हुए देना पड़ेगा वजह
जिसे समाज यह कहता है
कि औरतें बात बात में
बेवजह रोती हैं
वास्तव में स्त्री जन्म से ही
अभिनेत्री होती है.....
