रामायण ३०;सीता हरण
रामायण ३०;सीता हरण
इधर राम कहें सीता को
मनुष्य लीला करूं मैं जब तक
राक्षसों का नाश करूं मैं
अग्नि में निवास करो तुम तब तक।
समा गयीं सीता जी अग्नि में
छोड़ गयीं वहां अपनी छाया
लक्ष्मण जी को भी नहीं पता चला
किसी ने भी कोई भेद न पाया।
मारीच के पास पहुंचा था रावण
उसको सारी कथा सुनाई
कहने लगा तुम बनो कपट मृग
मेरे साथ वन में चलो भाई।
मारीच रावण को समझाए
राम को तुम ईश्वर ही जानो
उनसे वैर न करो दशानन
छोड़ दो ये सब, मेरी मानो।
न समझा फिर भी रावण तो
सोचे ,मौत से क्या है डरना
मना करूं तो रावण मारे
अच्छा भगवान के हाथों मरना।
आया रावण के साथ उस वन में
कपट मृग वो बन गया तब
सोने सा उसका शरीर था
मन को भाए था भागे वो जब।
सीता देखकर सुंदर मृग को
कहें राम से ,ये मुझे भाए
छाल इसकी है कितनी सुंदर
आप इसे जाकर ले आएं।
राम उठे बोले लक्ष्मण को
मैं मृग के पीछे हूँ जाता
सीता जी का ध्यान रखो तुम
लेकर उसको अभी मैं आता।
मृग भागा जब देखा राम को
राम भी उसके पीछे भागे
कभी वो छिपता, कभी प्रकट हो
कभी दूर कभी निकट वो लागे।
कठोर बाण मारा तभी एक
पृथ्वी पर तब वो गिरा था
हा लक्ष्मण कह त्यागे प्राण थे
परमपद उसको मिला था।
सीता ने आवाज सुनी तो
कहतीं लक्ष्मण तुम पता लगाओ
भाई तुम्हारे हैं संकट में
सहायता के लिए शीघ्र जाओ।
लक्ष्मण जब चले गए वहां से
रावण सन्यासी वेश में आया
कथा बहुत सी उन्हें सुनायीं
सीता को उसने भरमाया।
फिर भी उसका बस चला ना
फिर वो असली रूप में आया
हर कर ले गया सीता जी को
विमान में उनको था बैठाया।
सीता जी विलाप कर रहीं
जटायु ने पहचान लिया था
बाल पकड़ खींचा रावण को
रथ से उसको उतार दिया था।
मार मार के चोंच से उसको
शरीर उसका घावों से भर दिया
रावण ने कटार से अपनी
पंख काट उसे घायल कर दिया।
जटायु पृथ्वी पर गिर पड़ा था
घायल हो गया लड़ न पाया
सीता जी विलाप कर रहीं
रावण को उनपर रहम न आया।
देखे बन्दर पर्वत पर बैठे
सीता ने कुछ वस्त्र डाले वहां
रावण ले गया सीता जी को
लंका में, अशोकवन जहाँ।
वन में जा के सीता जी को
प्रीती और भय उसने दिखाया
सब कुछ करके हार गया दुष्ट
अशोक बृक्ष नीचे रखवाया।
उधर लक्ष्मण को देखा राम ने
चिंता हुई, उन्हें डर था थोड़ा
बोले वन में राक्षस बहुत हैं
अकेला क्यों सीता को छोड़ा।
आश्रम में वो वापिस आये
पर वहां पर नहीं थी जानकी
व्याकुल और दुखी हुए थे रघुवर
ढूंढ़ने उनको निकले राम जी।
पूछें पक्षी और वृक्षों से
सीता क्या देखी है आती
महाविरही जैसे वो दुखी थे
विलाप करें मनुष्यों की भांति।
कुछ दूरी पर उन्होंने देखा
जटायु घायल हुए पड़े हैं
पंख उनके वहां कटे पड़े हैं
पीड़ा से व्याकुल बड़े हैं।
सर पर हाथ फेरा रघुवर ने
पीड़ा उनकी ख़तम हो गयी
बोले, ये दशा रावण ने की मेरी
सीता को भी ले गया वही।
दक्षिण दिशा को वो गया है
मैं भी अब संसार से जाऊं
आपके दर्शन को प्राण थे अटके
अब परमधाम मैं पाऊं।
स्तुति की भगवान राम की
भक्ति का वर माँगा नाथ से
छोड़ा शरीर, फिर राम ने उनका
दाह कर्म किया अपने हाथ से।
आगे वन में कबंध को मारा
राक्षश बना जो दुर्वासा के शाप से
गन्धर्व बन चला परमधाम को
मुक्त हुआ वो अपने पाप से।
