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Rahul Singh

Others Crime

4.5  

Rahul Singh

Others Crime

जुल्म और उम्मीद नए सवेरे की

जुल्म और उम्मीद नए सवेरे की

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रात तो रात, दिन भी

जुल्मों का बसेरा हो गया

खौफ और जुल्म का अंधेरा हो गया

लगता है सभ्यता कहींं लुप्त हो गया

न जाने भारत की युवा को क्या हो गया

पता नहीं वह राह से भटक क्यों गया

देखा था मैंने भारत का एक ख्वाब 

हो बस अमन-चैन और इसमें मुझे रुबाब

मगर न जाने क्योंं दिन में भी अंधेरा पैर फैलाए


ना जाने क्यों बेटियों के साथ हो रहा अत्याचार

देश में मच रहा आहाकार

आखिर क्यों मच रहा आहाकार


स्वास वह भी लेती है

उसमेंं भी जान बसती है

घर की रौनक व शान, वह किसी की बेटी है

घर की लक्ष्मी, वह किसी की बीवी है

ना जाने क्यों उनका शोषण होता

है उसमेंं भी संवेदनाएं, नाजाने क्यों उनका स्वाभिमान खोता

आखिर क्योंं उनका चीर हरण होता


अबला नहीं, भारत की रानी है 

भारत की वीरांगनी है

हथियार उठा लो

अस्त्र-शस्त्र सब उठा लो

वक्त अब आ गया है

यह दुशासन सी दुनिया है

जनता क

ौरव हैै, तमाशा देखते रह जाएगा

लाज बचाने के लिए हमेशा कोई कन्हैया ना आएगा

अपने स्वाभिमान की

अपने आत्म-सम्मान की

रक्षा स्वयं करनेे का वक्त अब आ गया है 

आंखोंं में लहू, दिल में चिंगारी

मिटा दो यह समाज की महामारी

मिटा दो यह समाज की बीमारी


मानसिकता पर क्या कहूं मैं 

कहते कपड़ों के कारण होते रेप, आखिर ऐसी सोच पर क्या कहूं मैं

जींस पहन कर इतराने का उनका हक है 


जुल्मों-सितम की तस्वीर यह है की रोज हो रही घटनाएं

दो दिन समाचार पर सब चिल्लाएं

फिर सब मौन हो जाएं


न जाने कब आएगा, एक नया सवेरा

जब जुल्म का नामोनिशान ना होगा

हर तरफ सवेरा होगा

बस हर तरफ उजियारा होगा

और अंधकार कहीं लुप्त हो गया होगा


बस अब यही दुआ मेरी, लोगोंं की मानसिकता सही कर दो प्रभु !

ताकि हर तरफ सिर्फ शांंति का परचम लहराए

हर तरफ बस अमन-चैन हो

देश में बस अमन-चैन हो।



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