क्या खोया, क्या पाया
क्या खोया, क्या पाया
मिलते-बिछड़ते लोग यहां पग-पग में
मगर कोई शिकवा ना ही शिकायत मुझे किसी से इस जग में
जिंदगी में हम आए थे अकेले
जाएंगे भी अकेले
फिर क्यों इस भ्रम में है कि हम हैं दुकेले
जीवन-मरण एक अनंत परिक्रमा है
न जाने कब बुलावा है
सुख-दुख भी एक असीमित फेरा है
फिर क्यों खोने से डर लगता है
न जाने हमें घनिष्ठ अंधकार क्यों नजर आता है
यह अंधकार क्यों असीमित लगता है
असलियत तो यह हैै कि हर तरफ विद्यमान उजियारा है
हर तरफ, बस हर तरफ प्रकाशमान, प्रफुल्लित सवेरा है
एक छन हम बीती पर डालते हैं
अपने अंतर्मन को टटोलते हैं
क्या खोया, क्या पाया इस नश्वर संसार में
करने बैठे अगर सुख-दुख का शुमार
गम थोड़ा है, खुशियां बेशुमार
जो खोया है, वह पालनहारे की इच्छा
जो पाया है, उसका शुक्रगुजार हूं
व्यर्थ ही दौर लगी है
सब पाने की होड़ लगी है
यारों, कुछ खोकर ही, पाने की ललक है
हां, कुछ खोकर ही पाने की ललक है
अब जिंदगी से यही इल्तजा मेरी
हर हाल में मुकाम को पाना है
बस हर हाल में मुझे अपने लक्ष्य को पाना है।
