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Rani Sah

Tragedy Crime

4  

Rani Sah

Tragedy Crime

जीवन का मोल

जीवन का मोल

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मौत के संयोग और जीवन के वियोग 

की दहलीज पर वो अकेले खड़ी थी, 

चुपचाप बे - आवाज़ एक आग में जल रही थी;


उसके ख़्वाबों का घरौंदा टूट गया, 

बिन आग के लपटों के ही वो सुनहरा ख्वाब जल गया, 

जीवन का मोल उसने जाना था, 

जब मौत के क़रीब उसका ठिकाना था;


चंद छींटों ने उसको तबाह कर दिया, 

जली झुलसी चमड़ी को उसका नक़ाब कर दिया, 

किसी चमक की तलाश थी उसे, 

कामयाबी की प्यास थी उसे, 

मगर एक हादसे में वो जकड़ गयी, 

ज़िंदा होकर भी ज़िंदगी से उजड़ गयी;


उसके हौसलों का मकान काफी ऊँचा था, 

तेज़ाब की रफ़्तार को अपने चेहरे पर पड़ने से, 

उसने अपना हाथ बढ़ाकर रोका था, 

पल में उसने ख़ुद को मिटते देखा, 

जल गया उसका हाथ उन हाथों की रेखा;


उसके धुएं से जीवन में कोई राख़ ना बची, 

कोई झुलसा गया उसके जीवन को

और वो कुछ ना कर सकी, 

उसके चेहरे पर गिरे वो तेज़ाब के बुलबुले थे, 

किस हद तक तड़पी होगी 

जब जलते चेहरे से मांस के टुकड़े गिरे थे;


उसकी अंधी आँखों में वो ख़्वाब थोड़ा सा ज़िंदा था, 

जो किसी पहर उसने ख़ुद के लिए देखा था, 

यही वजह थी जो वो कांपती सांसों को भी थाम रही थी, 

बिन उँगलियों के भी मुठ्ठी बाँध रही थी;


मौत से गले मिलकर भी जीवन का हाथ पकड़े रही, 

अपने हौसलों के ज़रिए लड़ने की प्रेरणा बनी, 

जिसके किस्मत ने बेवफाई का आईना दिखाया, 

उसी ने कुछ वादों की ख़ातिर जीवन से वफ़ा निभाया, 

जीवन का मोल उससे पूछो, 

जो बेक़सूर होकर भी सबकी नज़रों में कसूरवार बनी रही;


कभी चाँद सा चेहरा था जिसका पर, आज सबके लिए दाग़दार बनी रही, 

जो सह गयी हर तकलीफ़ हर पीड़ा को, 

जिसने फिर थाम लिया इस जीवन को,

 

इस दर्द का ज़िक्र भी मुश्किल कर पाना था, 

पर उसने एकतरफा ही हिम्मत बाँधा था;

जो अपना सब कुछ खोकर ख़ुद की पहचान बनी रही, 

जो मौत के सफ़र में जीवन का नाम लेते रही! 


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