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DRx. Rani Sah

Tragedy Thriller

4  

DRx. Rani Sah

Tragedy Thriller

ज़ख़्म

ज़ख़्म

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दर्द सहते सहते ऐसा कलाकार हो गया हूँ

ज़ख़्मों का चलता फिरता बाज़ार हो गया हूँ


कल तक ख़्वाहिशे रखती थी मुझे जोड़ कर

आज टूटा बिखरा, बिखरकर तार तार हो गया हूँ


आसमानी फरिश्तें की तरह कदर थी मेरी

देखों सबकी नज़रों में बेअसर किरदार हो गया हूँ


नहीं होता है असर मुहब्बत में यारों

निभाकर मुहब्बत मैं बेज़ार हो गया हूँ


किसी की आँखों का काजल बना रहता था

उन्हीं निगाहों के दरमियाँ दीवार हो गया हूँ


रोया भी ज़ख़्मों को आँसुओं से धोया भी

अपनो के लिए नमक स्वादनुसार हो गया हूँ


सब कुछ खोया मैंने, मुझमें मेरा कुछ बचा ही नहीं

अब सिर्फ़ पेड़ मैं ज़ख़्मों का फलदार हो गया हूँ


पुरानी यादों से ना ही पुरानी बातों से दिल दुखता है

एहसासों को मार कर, मैं रद्दी का अख़बार हो गया हूँ


मेरा ज़ख़्म बड़ा ईमानदार है कभी भरता ही नहीं 

उल्फ़त देख ज़ख़्मों का मैं इनका सच्चा यार हो गया हूँ


इजाफ़ा इस खेल ए मोहब्बत में है बहुत

कल तक शून्य आज तकलीफों का कारोबार हो गया हूँ


नासूर बन गए ज़ख़्म मेरे नहीं है इलाज़ इन ज़ख़्मों का 

साँसों की दहलीज़ पर बैठे मैं मौत का इंतेज़ार हो गया हूँ।


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