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Kumar Sonu

Abstract Tragedy

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Kumar Sonu

Abstract Tragedy

मनोस्थिति अबला की

मनोस्थिति अबला की

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सृजन श्रृंगार से सज्जित हाड़।

मैल की बोझ से दबता मन।

बिलखता मन हंसता बदन।

बिस्तर पर बिछने को तैयार।

कुहकती रूह सिकुड़ता बदन।


तन को घूरते लालची नयन।

छिनता नोचता आबरू का हार।

अबला बेबस दिखती लाचार।

लिए चेहरे पर झूठी मुस्कान।


हवसी ठंडाता हवस की तपन।

जीवित शव में रगड़ता तन।

हर चोट में मन का बलात्कार।

तन के ओट में रूह की चीत्कार।

मिट गई भूख उसके हवस की,

क्रमबद्ध कई और हवसी तैयार।

सब पे मर्दानगी की भूत सवार।


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