बेटियों की शादी एवं उनके ऊपर होने वाले अत्याचार
बेटियों की शादी एवं उनके ऊपर होने वाले अत्याचार
कन्यादान हुआ जब पूरा, आया समय विदाई का।।
हँसी खुशी सब काम हुआ था, सारी रस्म अदाई का।
बेटी के उस कातर स्वर ने,बाबुल को झकझोर दिया।।
पूछ रही थी पापा तुमने,क्या सचमुच में छोड़ दिया।।
अपने आँगन की फुलवारी,मुझको सदा कहा तुमने।।
मेरे रोने को पल भर भी,बिल्कुल नहीं सहा तुमने।।
क्या इस आँगन के कोने में,मेरा कुछ स्थान नहीं।।
अब मेरे रोने का पापा तुमको बिल्कुल ध्यान नहीं।।
देखो अंतिम बार देहरी,लोग मुझसे पुजवाते हैं।।
आकर के पापा क्यों इनको,आप नहीं धमकाते हैं।।
नहीं रोकते चाचा ताऊ,भैया से भी आस नहीं।।
ऐसी भी क्या निष्ठुरता है,कोई आता पास नहीं।।
बेटी की बातों को सुन के,पिता नहीं रह सका खड़ा।।
उमड़ पड़े आँखों से आँसू,बदहवास सा दौड़ पड़ा।।
कातर बछिया सी वह बेटी,लिपट पिता से रोती थी।।
जैसे यादों के अक्षर वह,अश्रु बिंदु से धोती थी।।
दस्तक दिया है अत्याचारो ने दीन दुखियों पे।
बात आ गयी है अब मान स्वाभिमान की।।
लड़ना पड़ेगा अब एकजुट होकर के।
क्योंकि बात हुयी है एक बेटी के स्वाभिमान की।।
सबको जरूरत है ऐसे अभियान की।।
कयोंकि कान खोल के सुन लो अत्याचारों, रेप करने वालों।
खोखली नही होने देंगे जड़ हिंदुस्तान की।।
पाकर के सत्ता लाख कोशिशें कर लो परन्तु।
गिरने न देगे गरिमा ये सँविधान की।।