Anshika Saxena
Abstract
खोई सी
बावरी
सुंंदर सी
सांवरी
कैसे कहें
अपनी व्यथा
सबको लगे
सुंदर कथा..!!
बेटियों की शा...
अनकही कविता
मैंने सब नामों को घेर लिख डाला भारत। मैंने सब नामों को घेर लिख डाला भारत।
कि मैं चलूँ निर्भीक सी, वो रात तो आए कभी। कि मैं चलूँ निर्भीक सी, वो रात तो आए कभी।
पास आकर मेरे इन अंधेरों में, क्यों इसे रौशन करता नहीं है ! पास आकर मेरे इन अंधेरों में, क्यों इसे रौशन करता नहीं है !
गुण ही मानस की पहचान, गुण ही शान कहाय, रूप रंग तो उम्र का धोखा, समय चले ढल जाए। गुण ही मानस की पहचान, गुण ही शान कहाय, रूप रंग तो उम्र का धोखा, समय चले...
आँखों का गंगाजल जग की निष्ठुरता धोता है। आँखों का गंगाजल जग की निष्ठुरता धोता है।
जिसमें डूबता है कभी मन और कभी उबरता। जिसमें डूबता है कभी मन और कभी उबरता।
ज़रा तू फ़लक से नज़र भी हटाले ज़मी में बहुत से हैं रहते सितारे। ज़रा तू फ़लक से नज़र भी हटाले ज़मी में बहुत से हैं रहते सितारे।
सात सुरों से सजी हुई मीठी संगीत है जिंदगी हर हार मे मिलती हुई अनोखी जीत है जिंदगी सात सुरों से सजी हुई मीठी संगीत है जिंदगी हर हार मे मिलती हुई अनोखी जीत है ज...
अपने मन और मस्तिष्क की प्रेरणा से जगजीवन के लिए उपहार लिखता हूँ अपने मन और मस्तिष्क की प्रेरणा से जगजीवन के लिए उपहार लिखता हूँ
मनता जब नवरात्रि-पर्व हर साल देश में दिव्य प्रभा से मिट जाता सारा तम दूषित। मनता जब नवरात्रि-पर्व हर साल देश में दिव्य प्रभा से मिट जाता सारा तम दूषित।
उन दोंनो की बहस का जब निकला ना परिणाम हालाते बहस जान तब प्रगट भये भगवान उन दोंनो की बहस का जब निकला ना परिणाम हालाते बहस जान तब प्रगट भये भगवान
जिनके खेतों में है धूप घमासान फिर भी होठों पर है सुखी मुस्कान। जिनके खेतों में है धूप घमासान फिर भी होठों पर है सुखी मुस्कान।
उसके ही सीने से लगकर तब तब सोया करते थे। वो कंधे पर बैठाकर अक्सर मेला उन्हें दिखाता था उसके ही सीने से लगकर तब तब सोया करते थे। वो कंधे पर बैठाकर अक्सर मेला उन्हें ...
स्वयं प्रकाशित होने को, दीप –पर्व की शुभकामनायें। स्वयं प्रकाशित होने को, दीप –पर्व की शुभकामनायें।
छोड़ो बैर अब रहने भी दो, जो भी बची लड़ाई है। छोड़ो बैर अब रहने भी दो, जो भी बची लड़ाई है।
इंसानियत रग रग में हो, उससे अपना पेमेंट माँग आयी इंसानियत रग रग में हो, उससे अपना पेमेंट माँग आयी
फिर क्यों मैं इन रातों की तन्हाइयों से डरता हूँ ! फिर क्यों मैं इन रातों की तन्हाइयों से डरता हूँ !
किन्तु बुराई रूपी रावण, अच्छाई को हर रोज़ ही जलाते हैं। किन्तु बुराई रूपी रावण, अच्छाई को हर रोज़ ही जलाते हैं।
समंदर में नाव-सा, धूप में छांव-सा, शहरों में गांव-सा दर्पण के भाव-सा है मेरा दोस्त। समंदर में नाव-सा, धूप में छांव-सा, शहरों में गांव-सा दर्पण के भाव-सा है...
लेक़िन शान से हर सपना पूरा कर सके, ऐसा हर लम्हा हो तेरा l लेक़िन शान से हर सपना पूरा कर सके, ऐसा हर लम्हा हो तेरा l