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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Tragedy Others

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Jalpa lalani 'Zoya'

Abstract Tragedy Others

वादा-ए-मोहब्बत

वादा-ए-मोहब्बत

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अश्कों को मेरे तेल समझ उसने दीया जला दिया,

लहू को मेरे मरहम समझ अपने ज़ख़्म पर लगा दिया।


बेइंतहा फिक्र करते थे उनकी शाम-ओ-सहर,

उसने हमारी परवाह का भी दाम लगा दिया।


इश्क़ में नहीं निभा सके वो वादा-ए-मोहब्बत,

और बेवफ़ा का इल्ज़ाम हम पर ही लगा दिया।


मोहब्बत करके दिल तोड़ गया वो मतलबी

फिर दोस्ती का नाम देकर एहसान जता दिया।


वो क्या समझेगा 'ज़ोया' तेरी ग़ज़ल, शायरी को,

जिसने कागज़ पर उतरे जज़्बात को अल्फ़ाज़ बता दिया।

8th January


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