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DRx. Rani Sah

Abstract Children Stories Inspirational

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DRx. Rani Sah

Abstract Children Stories Inspirational

बचपन के अंदर का बच्चा मेरा

बचपन के अंदर का बच्चा मेरा

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बचपन के अंदर का बच्चा मेरा ना जाने कहा खो गया, 

देखकर छाले बाप के पाँव के 

वो बेबसी ममता के छाँव के

वो मयुशी वो खामोशी 

जिस तरह जी रहा था मेरा परिवार अभाव में

ना जाने कब मैं बच्चा से बड़ा हो गया, 


उस रोज एक शाम में

ज़िंदगी का पहलू समझ गया

हर जिद्द बचपन वाली सब एक झटके में उतर गया, 

पलकों तले रखा था जो ख्वाब संभाल के

सब कुछ कुछ नही था सामने मेरे परिवार के

बचपन के अंदर का बच्चा मेरा ना जाने कहा खो गया, 

देख कर जिम्मेदारी अपने घर की मैं बच्चा से बड़ा हों गया, 


उड़ने का शौकीन था नही भूला अपने उड़ान को, 

बस कीमती समझा मैंने अपने मां बाप के मुस्कान को, 

पिता का कंधा थका था

माँ की ख्वाहिशों की ज़मीन 

हम बच्चों के हसरतों तले कुचला था

पर ना पापा झुके ना माँ ने कुछ कहा था

हर दर्द हर तकलीफ अपने बच्चों के लिए उन दोनो ने मुस्कुरा के सहा था, 


बचपन के अंदर का बच्चा मेरा पूरी तरह बड़ा हो चुका था, 

अपनी इन्ही आँखो से अपने पिता को उंगलियो पे रुपये गिनते देखा था, 

कुछ पैसे ही थे उनके हाथ में

माँ उदास खड़ी थी उनके साथ में

दोनो ने साँझा किया

पाई पाई अपने बच्चों के लिए जोड़ दिया, 

माँ की साड़ी भी पुरानी हो गयी थी

तंग हालात से गुजरना मेरे परिवार की कहानी हो गयी थी, 

शायद इसलिए भी बचपन के उस बच्चे की मासूमियत खो गयी थी, 


घर की चमक परिवार की रौनक

सब काग़ज़ के टुकड़े मे सिमट रहा था

वक़्त भी किस्मत के साथ मिलकर आग उगल रहा था, 

कोई लत नहीं बस भूख बड़ी थी

कितनी ही बार मेरी बहन मन मार कर दुकानों के सामने खड़ी थी, 

मेरी बात मुझ तक थी

मेरे होते हुए क्यों मेरी बहन रो रही थी

पिता का त्याग माँ का प्यार बहुत ऊँचा निकला


अपनी खुशीयों को अपने बच्चों के लिए एक पल में भुला दिया, 

बचपन के अंदर का बच्चा मेरा ना जाने कहा खो गया, 

देखकर अपने माँ बाप को

उनके आँखो में अपने लिए बेशुमार प्यार को

ना जाने कब मैं बच्चा से बड़ा हो गया

कभी घुटनों के बल चलता था आज अपने पैरों पर खड़ा हों गया, 


मैं बच्चा अपने बचपन को हर रोज जीता हूँ, 

अपने माँ बाप की खुशी में खुश बहुत रहता हूँ, 

आज भी पिता की बात कानों में गूंजती हैं, 

मैं संभाल लूंगा सब

तु अपना पढ़ाई कर 

मेरे होते हुए फिक्र क्यों करता है? 

माँ ने बेटा कहा था

 उम्र से पहले बड़े होने से रोका था, 

पर मैं बच्चा वैसा था 

वही करता जो चाहता था


मेरे उपर मेरे परिवार का आस टिका था, 

हाँ मैं जीवन में कुछ करने को तैयार हुआ, 

बचपन के अंदर का बच्चा मेरा विस्तार हुआ, 

अब हर लम्हें में अपनी माँ की खुशी पिता का गुरुर चाहता हूँ, 

बस इसीलिए मैं बच्चा से बड़ा हों गया हूँ। 


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