STORYMIRROR

Nitu Mathur

Tragedy

4  

Nitu Mathur

Tragedy

नन्हा जीव

नन्हा जीव

1 min
299

नन्हा जीव... गर्भ में पनपता 

माँ की डोर से अंदर तक जुड़ा

इधर उधर विचरता, अपना आकार लेता 

माँ भी ममता से परिपूर्ण 

सींच रही इसे, दे के अपना खून

अति प्रसन्न भाव से पूर्ण, 

सोचे कब बाहर आऊँ

कैसे सभी को निहारूँ

तभी कुछ अनहोनी सी हुई प्रतीत 

कुछ अस्वीकृत सा हुआ घटित, 

आरम्भ हुआ प्रयास उस जीव के अंत का 

ममता पर हर मुमकिन दबाव, प्रहार का

आधे बने शरीर का आधे में ही नाश करने का

अति निर्दयता, संवेदनहीनता का,

पर क्यूँ ???? 


जिसे पाल नहीं सकते, उसका नाश भी क्यूँ ? 

प्रश्न बड़ा है... तो सोचना भी गंभीरता से होगा 

समाज में बढ़ते दुष्कर्म को रोकना होगा, 

एक " परीक्षण " मात्र से ही लिया गया निर्णय 

कदापि उचित नहीं 

और ऐसे करम करने वालों के लिए 

कोई न्यायिक राहत नहीं

"बेटा" हो या " बेटी " कोई अंतर नहीं 

दोनों ही "ईश्वर " की देन है 

कोई उच्च या निम्न नहीं, 

थोड़ी समझ से लेना होगा काम 

और इस " नन्हे उपहार " का 

करना होगा सम्मान। 

  

  धन्यवाद !!!!  


          


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy