मेरे जैसा ही लगा
मेरे जैसा ही लगा
हद थी आईने की या मेरी सादगी
हर शख्स मुझे मेरे जैसा ही लगा।
उसने उतारा न नक़ाब चेहरे से कभी
वो मुझे मेरे जैसा ही था लगा
उसने खोली थी दिल की किताब कभी
उसमें रखा मुरझाया फूल मुझे मेरे जैसा ही लगा
परतों में बंद थी चालाकियाँ उसकी
उसकी सादगी में वो मेरे जैसा ही लगा
हूँ जो मैं आज तन्हा सी इस कदर भीड़ में
वो भी मुझे महफ़िल में जाने क्यूँ तन्हा ही लगा
हद थी आईने की या मेरी सादगी
हर शख्स मुझे मेरे जैसा ही लगा।