क्यूँ मुझे
क्यूँ मुझे
तुम जो रोज रोज करवट बदल बदल सताती हो मुझे
ऐ जिंदगी ये बता आख़िर कहना क्या चाहती हो मुझे
मोम से पत्थर बनी, पत्थर से फिर मोम हो गई
कुछ रह गया अब भी बदलना बताती क्यूँ नहीं मुझे
कई तूफ़ानो से गुजर कर ज़िन्दा हूँ मै अब भी
और कितने हैं बाकी बताती क्यूँ नहीं तू मुझे
मेरे दिल पर घाव गहरे बहुत, छुपा रखे दुनिया से
और लगेंगे अभी कितने बताती क्यूँ नहीं तू मुझे
रोज मिटती हूँ शमा की शक्ल बन फिर उठ जाती
कितना है तेल बाकी मुझमें बताती क्यूँ नहीं तू मुझे
लड़खड़ाती हूँ कुछ देर गिरने नहीं देती कभी खुद को
तू ये बता तू इतना दुःख दे दे सताती क्यूँ है मुझे
देख हौसलों से बनी हूँ मै हर धूप आँधी तूफ़ान सह लूँगी
तू देख घर कोई और अब मै अंगूठा दिखाती हूँ तुझे।
तुम जो रोज रोज करवट बदल बदल सताती हो मुझे
ऐ जिंदगी ये बता आख़िर कहना क्या चाहती हो मुझे।
