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Robin Jain

Abstract

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Robin Jain

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गड़बड़ घोटाला

गड़बड़ घोटाला

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हाथ शराब का प्याला है

कुछ गड़बड़ है घोटाला है

ये जश्न मनाने वाला है

या इश्क़ में मरने वाला है

कुछ गड़बड़ है घोटाला है।


ये मस्त है खुद की बाहों में

ये झूम रहा है राहों में

ये मंद मंद मुस्काता

खुद से बातें करता जाता है

पर जुबान पे ताला है

कुछ गड़बड़ है घोटाला है।


वो भटक रहा है रातों में

एक बोतल लेकर हाथों में

ये मन का कोई सच्चा है

या दिल का पूरा काला है

ये प्यार करे बोतल को ऐसे

जैसे सुन्दर कोई बाला है

शंका है संदेह है मुझको

कुछ गड़बड़ है घोटाला है।


उसका कोई यार नहीं

वो प्यार निभाने वाला है

मंजिल से अनजान मगर

वो यूं ही चलने वाला है

गिरता है कभी पड़ता है

जाने क्या करने वाला है

कुछ गड़बड़ है घोटाला है।


कभी जमीन पर गिर पड़ता

फिर कभी खड़ा हो जाता है

अय्याश है वो आवारा है

यूं ही पीने वाला है

या कुछ बात छिपाए बैठा है

किसी गम में वो मतवाला है

कभी हंसता है कभी रोता है

कुछ गड़बड़ है घोटाला है।


हाथों को सर के नीचे रख

नींदों में खोने वाला है

ये जश्न मनाता सोकर या

यूं ही मर जाने वाला है

कब होश में आए पता नहीं

कुछ गड़बड़ है घोटाला है।


सूरज की किरणें पड़ते

ये गायब होने वाला है

टूटी बोतल का टुकड़ा

पैरों में चुभने वाला है।


हालातों की हाला को ले

ये प्रतिबिंब कहीं था क्या मेरा

ये झूठ कोई था ख्वाबों का

या सच को कहने वाला है

शंका है संदेह है मुझको

कुछ गड़बड़ है घोटाला है।


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