तिनका
तिनका
किसी कोने में पड़ा
सबसे अनजान
खुद जैसे सैकड़ों के बीच
मिटी हुई पहचान,
आसमां को निहारता है
नादान है या बेवकूफ है,
ऊंचाईयों को बखारता है।
हवाओं के झोंको को पंख मानता है
हंसती हैं और जमीनी चीजें उसे देखकर,
पर विश्वास है खुदपर
उडूंगा तो कभी, जानता है।
लाख समझाया जाता है
पर वो कहां मानता है,
है कंकड़ का टुकड़ा
खुद को पहाड़ पहचानता है।
बहती हवाओं पर एक टक नजर है
तेज़ हुई जो कभी,
चल पड़ेगा आसमान की ओर
उड़कर वो अभी।
हवाओं ने पूरा किया वादा
दिखाया आसमान,
झोकों में लहराया
नीचे ये जहान !
तैरूंगा मैं भी इन बादलों की तरह
<p>छोटे एक तिनके की
बढ़ी है शान।
ऊंचाई का नशा,
है क्या शबाब
मीलों दूर उड़ना,
सफर लाजवाब,
पल भर के झोंके में
बूने हज़ार ख्वाब।
अगले ही पल ये कैसा शोर था,
समझा था पंख जिसको
सिर्फ हवा का ज़ोर था।
आंख मिचोए आंधी से लड़ता,
लड़खड़ाता, पलटता,
नीचे गिर पड़ता।
दो पल का नशा था
था जो हवा पर,
आंसुओं का बोझ ढोए
पड़ा फिर धरा पर।
ना ख्वाबों की कीमत
ना किस्मत का उजाला,
किसको क्या जनम मिला
बस उसी का बोलबाला।
अस्तित्व का न सार है
जीवन बेकार है,
लेकर भारी मन
कोने में फिर बैठा,
तिनका लाचार है।