ज़िंदगी, अभी यहीं, अभी नहीं..
ज़िंदगी, अभी यहीं, अभी नहीं..
झांकते झरोखे से
थी ज़िंदगी यहीं,
पल में छिपी कहां!
दिखी नहीं या है नहीं?
है कल्पना या सच कहीं
भ्रम है तो फिर भ्रम सही,
ये खेल ज़िंदगी का है
अभी यहीं, अभी नहीं..
उगते सूरज से डूबते
सूरज का
या डूबते सूरज से
उगते सूरज का
अंतराल दो पल का है,
ये नाम सिर्फ आज का
ना कल का था, ना कल
का है
खेल आँख मिचौली का
तू खेल तो सही,
ये ज़िंदगी का खेल है
अभी यहीं, अभी नहीं..
बड़प्पन के मुखौटे पर
खिलती हुई नादानियाँ
बस मेरी सुनी हुई
लिखी हुई कहानियां,
डायरी के पन्नों को
ज़रा पढ़ तो सही,
हुई थी जो अभी शुरू
है अभी यहीं, अभी नहीं..
खलखल करता क्या कहता
ये नदियों का पानी,
गौर से सुनो ज़रा
आवाज़ जानी मानी
या सर्र सर्र करती हवा सुनो
पहाड़ों की ज़ुबानी
जाने कौन बताएगा
ज़िंदगी को कहीं,
देखा था जिसको झांकते
अभी यहीं, अभी नहीं..
ज़मीन से कुछ फिट ऊपर
क्या है ये यहीं!
या पूरा आसमां
ये है ही नहीं?
अभी तो शुरू हुई
ये खत्म हर घड़ी,
दौड़कर छू लेता पर
अभी यहीं, अभी नहीं..