राधा प्रेम
राधा प्रेम
वृंदावन री बाग सजायो
मन आपन तो खूब पठायो,
बिसरत ना कैसे समझायो
म्हारो मन को श्याम जो भायो।
प्रेम के ब्रज में प्रेमी गलियाँ
प्रेमी राधा प्रेमी सखियाँ,
हर कण कान्हा देखत अखियाँ
चित्त रो म्हारो कान्हा बसियां।
पात पात सब फूल पुकारे
कान्हा दर्शन को नैन संवारे,
राह देख अब तन मन हारे
आवत क्यूँ नहीं कान्हा प्यारे!
फूल सी बैठी फूल सजाए
हाथ गाल रख नयन गिराए,
बिछोह में भी राधा सुख पाए
रोम रोम कान्हा गुण गाए।
सखी मुख सुन वचन ये जाना
ग्वालों संग बैठा री कान्हा,
अति कठोर कान्हा मन भाना
मंत्रमुग्ध भयी सृष्टि सारी,
मुरली धुन सुन परम सुहाना।
कान्हा समीप जब राधा आवे
यमुना तीर परम सुख पावे,
बंद नयन कान्हा के पावे
राधा व्याकुलता कैसे समझावे!
राधा आयो भान लगो है
परम ध्यान से श्याम जगो है,
मंद मंद मुस्कावत कान्हा
निर्दोष नयन से जगत ठगो है।
सारा जग का ध्यान भुलावे
नयन कृष्ण जो खुद पर पावे,
राधा के मन कान्हा भावे
राधा ब्रज संग कान्हा बन जावे।