पंख फैलाने दो
पंख फैलाने दो
वह आना चाहती है इस दुनिया में,
देखना चाहती हैनदियों का बहना,
सूरज का उगना , फूलों का खिलना,
चिड़ियों सी चह़कना चाहती है,
तितलियों सी उड़ना चाहती है,
मिटाना चाहती है आंगन का सूनापन
अपनी खिलखिलाहट से
बताना चाहती है हर उन लोगों को
जो समझते हैं कमजोर उसे
नाप सकती है जहां को
अपने नन्हें क़दमों से
भरना चाहती है समंदर को
अपनी मुट्ठी में
पर्वत की ऊंचाई को
सागर की गहराई को
दिखाने अपनी पहचान
दुनिया में आना चाहती है,
उसे अपने पंख फैलाने दो
ना रोको उसको आने दो
उसे अपने पंख फैलाने दो
ना रोको उसको आने दो।