आगे जाना है......
आगे जाना है......
तू व्यथित क्यों, बेचैन क्यों ?
हारा हुआ क्यों, मौन क्यों ?
है क्यों निराशा, तपन क्यों ?
ये कसक क्यों, ये रुदन क्यों ?
टूटा है तू, बिखरा नहीं
हारा है तू, मरा नहीं
खाली है हाथ, किस्मत नहीं
स्थिर है तू, कायर नहीं
सीख पिपीलिकाओं से, गिरकर चढ़ना
सीख परिंदों से, ऊंचा उड़ना
सीख कुसुम से, कांटों में खिलना
सीख प्रकृति से, निरंतर देना
उठ, बढ़, चल आगे जाना है
अपने ख़्वाब साकार कर दिखाना है
स्वयं जीना और जगत को सिखाना है
मानवता का प्रसार चतुर्दिक फैलाना है
भारत का परचम विश्व में लहराना है
देश को फिर जगतगुरु बनाना है ।।
