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Kavi Chandrabhan Lodhi

Tragedy

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Kavi Chandrabhan Lodhi

Tragedy

बिलखती दिव्या

बिलखती दिव्या

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मंदसौर की घटना ने,

ऐसा दिल दहलाया है।

जालिमों ने ऐसा घिनोना काम किया,

जो खोल उठा हर किसी खून।


लगता है प्यास बुझाऊँ,

उनका मैं पीकर खून।

रो रहे मासूम के परिजन,

इंसाफ नहीं मिल पाया है।


मौत से भी बदत्तर सजा हो,

उन जालिमों दरिंदों की,

हिंदू मुस्लिम अब ना करो तुम,

हर घर में एक बेटी है।


जुल्म नहीं होता धर्म से,

जुल्म नहीं होता जात से।

कई आसिफ़ा तुम्हरी होंगी,

कई दिव्या हमरी होंगी।


जो बचाओगे धर्म समझकर,

अपनी बेटी भी खोदोगे तुम।

जो ना मिली इनको सजा अभी,

ऐसे इरफान लाखों होंगे।


धर्म-जाति छोड़कर अब तुम,

ना हो फांसी जब तक अब।

फांसी की तब तक मांग करो तुम,

कहीं लुटी थी निर्भया।


कहीं लुटी थी आसिफ़ा,

आज लुट गई दिव्या।

ना जाने अब कल क्या होगा,

ना जाने अब कौन लुटेगा।


करत कवि चंद्रभान विनती,

हे सरकार अब सुनलो तुम।

बलात्कारियों का खून तो माफ करो,

फिर ना लुटेगी कोई बेटी।


जहां छेड़े कोई बेटियों को,

सीधा उस पर गोली बार करो।

बेटियों पर गलत निगाहें जो डाले,

चौराहों पर हम सब गोली मारे।


फिर ना होगा कोई इरफान,

फिर ना होगा कोई आसिफ़।

फिर न लुटेगीं मेरी बहने,

आजादी से फिर घूम सकेंगी।


हर घर में एक बेटी होगी,

हर घर में खुशियां होगीं।

हर घर में खुशियां होंगी।


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