अश्क
अश्क
अश्क जैसा
निकलता है कुछ
ज़ख्म भरने को
उस डाली से,
जिसकी कली को
तोड़ लिया गया है,
कुछ क्षण पहले।
बहुत आसान है न?
किसी कली को तोड़ लेना,
मसल देना
उस ज़हर के लिए
जो उसकी परिभाषा में
महक है,
या किसी,
कोरे पन्ने पर
काली स्याही छिटक देना
जिसे अपनी सादगी पर
गुमान था,
पर बहुत मुश्किल है,
जान पाना
उस पन्ने,उस डाली
के भीगने का राज़,
वो ओस नहीं
उसके अश्क़ हैं !