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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

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अधिवक्ता संजीव रामपाल मिश्रा

Tragedy

हम सफर हमदर्द समझा तुम्हें

हम सफर हमदर्द समझा तुम्हें

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मालूम न था कि तेरे दिल में बेवफाई है,

प्यार दिल में और होठों पर रुसवाई है।

हम सफर हमदर्द समझा तुम्हें,

इस तरह छोड़ दिया राह मुझे।


न खता की फिर भी इल्जाम मिले,

विछड़ने के बाद गम हमें इनाम मिले।

नशे में रहता हूं तब तुझे भुला पाता हूं,

अब यही जिंदगी है मेरी भूल जाता हूं।


मैं नशे में‌ हूं मेरे जज़बात टूटे हैं,

मैं चुप हूं मेरे होठ सिले से हैं।

जो प्यार सच्चा करते हैं वही नज्म लिखते हैं,

जिन्हें प्यार सौदा होता है वही जख्म देते हैं।


तू नहीं बर्बाद तेरी यादें करती हैं,

तू नहीं घायल तेरी बातें करती हैं।

क्या तूने भी प्यार किया था,

जो एक पल माफ न कर सकी,

तेरी गलतियों को माफ किया था,

और फिर भी तू मेरी न हो सकी।


तू मुझे छोड़ के जाये तो इल्तजा कर दे,

ऐसाकर जाने से पहले मुझे पागल कर दे।

वरना तेरी यादें नज्म लिखती रहेगी,

नब्ज घटती मेरी सांसें टूटती रहेगी।


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