अगर जमीर जिन्दा हो तो
अगर जमीर जिन्दा हो तो
आनेवाली नस्ल पूछेंगी
तब तुम कहाँ थे ? सबकुछ
ख़त्म किया जा रहा था
किसान बेमौत मर रहा था
युवक बिलकुल बेकार बैठा था
तब तुम कहाँ थे ? उनकी चीख पुकार
क्या तुम्हे सुनाई नहीं दे रही थी ?
क्या तुम्हारा जमीर जिन्दा था ?
तो फिर तुम उसके साथ क्यों नहीं खड़े हुये ?
क्यों अपने जिद पर अड़े रहे ,मनमानी सहते रहे
बहुत कुछ करने की चाहत मगर उनके झंडे लहराते रहे
मौत के सौदागर बनके जुल्मी सियासत के डंडे बनते रहे ?
उठो जागो दोस्त आग लग चुकी हैं घर में
किस भ्रम में तुम जिए जा रहे हो बिलकुल खामोश ?
आज किसान , मजदुर भुगत रहा हैं ,कल क्या होगा ?
उनकी आवाज बनो अगर जमीर जिन्दा हो तो!
