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Abasaheb Mhaske

Tragedy

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Abasaheb Mhaske

Tragedy

अगर जमीर जिन्दा हो तो

अगर जमीर जिन्दा हो तो

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आनेवाली नस्ल पूछेंगी 

तब तुम कहाँ थे ? सबकुछ 

ख़त्म किया जा रहा था 

किसान बेमौत मर रहा था 


युवक बिलकुल बेकार बैठा था 

तब तुम कहाँ थे ? उनकी चीख पुकार 

क्या तुम्हे सुनाई नहीं दे रही थी ?

क्या तुम्हारा जमीर जिन्दा था ? 


तो फिर तुम उसके साथ क्यों नहीं खड़े हुये ?

क्यों अपने जिद पर अड़े रहे ,मनमानी सहते रहे 

बहुत कुछ करने की चाहत मगर उनके झंडे लहराते रहे 

मौत के सौदागर बनके जुल्मी सियासत के डंडे बनते रहे ?


उठो जागो दोस्त आग लग चुकी हैं घर में 

किस भ्रम में तुम जिए जा रहे हो बिलकुल खामोश ? 

आज किसान , मजदुर भुगत रहा हैं ,कल क्या होगा ?

उनकी आवाज बनो अगर जमीर जिन्दा हो तो!


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