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गरीबी

गरीबी

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तपती गर्मी में छत का साया नहीं होता,

कड़कड़ाती ठण्ड में तन पर कपड़ा नहीं होता,

इन सभी के बाद भी मै कभी नहीं रोता।


कभी तुझसे नहीं पूछता की

तुमने मुझे ऐसा क्यों बनाया ?

पैदा कर मुझे इस संसार में

गरीब नाम दिलवाया।


किस्मत ही तूने ऐसी बनाई है

रूखी सूखी रोटी ही नसीब में आयी है,

कभी कभी तो ऐसी नौबत आयी है

कई कई दिनों तक रसोई भी नहीं बन पायी है।


इन सभी के बाद भी जब रात सुहानी आती है ,

पानी पीकर भी चैन की नींद आ जाती है ।।

यही सोच कर सो जाता हूं

कि जैसा आज है वैसा ही कल होगा,

न आज मेरे पास कुछ है और

न ही कल कुछ होगा ।


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