सलाह
सलाह
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मुट्ठी भर रेत उठाने में
कुछ हाथ से छूट जाती है
मिला नहीं उसके बारे में क्या सोचना
कुछ आशाएं भी एक दिन टूट जाती है
कुछ होना ना होना सब क़िस्मत का
खेल है
पता नहीं क़िस्मत बार बार क्यूँ मुझसे
रूठ जाती है
जितनी चादर है उतने ही पैर पसारो
कितनों की कमर दिखावे में टूट जाती है
होगा कुछ अच्छा तो इतराना मत
अहंकार पूरी शोहरत लूट जाती है
भ्रम है तेरा की बस तू ही है शान ए शहंशाह
कितनों की गर्दन बिना झुके टूट जाती है
किसी और के इंतज़ार में अपने काम मत
रोकना
कितनों की गाड़ी इसी के कारण छूट जाती है
और
भगवान की लाठी में आवाज़ नहीं होती
कितनों को बिना बताए कूट जाती है