बचपन
बचपन


वह बचपन भी क्या सही था,
रेत के मकान बना लेते थे
और इ एम आइ भी नहीं होती थी
कितनी शरारत करते थे तब,
तभी लगता था काश,
ये पढ़ाई नहीं होती थी
हर किसी को मूर्ख बनाते थे तब,
बोले हुए सच में, सच्चाई नहीं होती थी
राजाओं के जैसा, कट गया बचपन,
तब तो दिमाग में इतनी, महँगाई नहीं होती थी
चोर सिपाही, बस खेल में होते थे,
दिन दहाड़े लुटाई नहीं होती थी
हर खेल, खेल ही लगता था
तभी इतनी लड़ाई नहीं होती थी
सब को सब कुछ समय पे ही बता देते थे,
तभी किसी की किसी से बुराई नहीं होती थी
हम नासमझ ही अच्छे थे,
तभी किसी में इतनी चतुराई नहीं होती थी
पैसा कमाना ही सब कुछ है
काश, किसी ने ये बात हमे बतलायी नहीं होती थी !!