वाह रे जमाना
वाह रे जमाना
हमने खोद दी हैं पेड की जडें
और काट दी हैं पतंग की डोर
रिश्तों के सूर्य पर लग गया ग्रहण
चल पडे हम स्वर्ग से नर्क की ओर
माता पिता के चरणों में अब स्वर्ग कहां?
रमता है मन रमणियों का संसर्ग हो जहाँ
मकान हमने बना दिए पर उजड गए घर
अपने ही हाथों लुट गए सफर में कारवां
सोचा न था वक्त ऐसा भी आएगा
श्रवण कुमार जिन्दा न रह पाएगा
माता पिता रहेंगे वृद्धाश्रम में
बेटा पत्नी सहित मौज मनाएगा
ऐसे नालायक बच्चों से कहनी है एक बात
माता पिता को रुष्ट कर कटेंगे न दिन रात
तीक्ष्ण होती है वृद्धों की हाय की कटार
झेल न पाओगे तुम उनका मर्मस्पर्शी आघात
काट डाला वृक्ष तो छाया कहां से पाओगे
न रहा वृक्ष तो मीठा फल कहां से खाओगे
अरे मूढ, चेत अब वरन बाद मे पछताओगे
पोछ न लेगा आंसू कोई जब जब इसे बहाओगे।