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Jaiprakash Agrawal

Tragedy

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Jaiprakash Agrawal

Tragedy

पक्षी

पक्षी

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पक्षी इन्सान से बेहतर हैं

बिना भेद भाव के रहते हैं। 

खुले गगन मे उडते हैं

जमीन पर दाना चुगते हैं। 

सरोवर का जल पीते हैं


पंक्षियों के रंग अनेक हैं

फिर भी भाषा एक है

न जात है न पात है

सभी एक साथ हैं। 

  

 सूर्य की उर्जा 

 और आकाश की छत 

 है सबके लिए।


  उनमे कोई जात पांत नही 

  न ही धम॔ की चाहत 

  न हुए कभी दंगे 

  न किसी मां की हुई सूनी गोद 

  

उनके लिए कोई फक॔ नही 

  मन्दिर हो या मस्जिद 

  किसी भी मुंडेर पर 

  बेखौफ बैठते हैं।

  

 काश आदमी की फितरत ऐसी होती 

 कि हम इन्सान कहलाते 

 चिडियों की तरह मिल जुल कर रहते 

  तो किसी मां की गोद नही होती सूनी 

 

 जो हम सब का पिता है 

 उसे हम रुसवा न करते 

 भाई भाई का खून न बहाते 

  

 आज कोई गांधी नही 

  न अब्दुल गफार हैं 

  

 शहर को यह हुआ क्या है? 

  कौन सा जुनून सवार है? 

  राजनीति की आग है 

  और नफरत की बयार है 

 

  जब खून से रंगी हो जमीं

  तब विकास की बात नही होती 

  प्रगति के रास्ते हो जाते बंद

  अपनो से अपनो की बात नही होती 

  

 जब चलती है कोई गोली 

 उस पर नाम नहीं लिखा होता 

 कोई दीपक होगा या असलम 

 उनका इस दंगे से सरोकार नही होता 

   

बंद करो यह खून की होली 

 और सेंकनी सत्ता की रोटी 

 आज मानवता शर्मसार हुयी तो

 माफ नहीं करेगी भारत की माटी।


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