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Pinki Khandelwal

Abstract

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Pinki Khandelwal

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मानसून

मानसून

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जिस प्रकार मानव स्वभाव बदलता,

उसी तरह मौसम न जाने कितनी करवटें बदलता,

कहीं धूप तो कहीं छांव रखता,

ये मौसम न जाने कितने रंग बदलता,


कहीं रात तो कही सुबह होती,

कहीं धूप तो कहीं बारिश होती,

न जाने मौसम कितनी चाल बदलता,

सावन में कहीं सूखा है तो कहीं आफत की बारिश,


कोई गर्मी में धूप की मार झेलता तो कोई आंधी के झोंके खाता

और सर्दी की बात ही बड़ी निराली ठंड के मौसम में धूप,

 और फ़रवरी के मौसम में ठंड पड़ती,

 क्या कहना इसका न जाने मौसम कितनी चाल बदलता,


कुदरत की लीला कहूं या मानव की करनी,

जो मौसम इतने रंग बदलता,

जहां पहले समय अनुकूल मौसम अपनी चाल चलता,

वहीं आज मौसम अपने आप रंग बदलता,

जहां गर्मी में भीषण तपिश रहती वहां जोरदार बारिश करता,

जहा कभी ठंड से कपकपाता शरीर वहां इंसान धूप की मार झेल रहा,


सावन में जहां रिमझिम बारिश बरसती मौसम सुहावना होता,

वहां आज मौसम ने ली करवट आफत की बारिश बहाता,


हे इंसान मत कर प्रकृति को दूषित और क्रोधित,

नहीं तो ऐसा ही कहर ढाहेगी प्रकृति,

जिसकी मार झेलगा हर इंसान।


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